किसान आंदोलन के कारण अंबाला-लुधियाना ट्रैक 7 दिन से बंद, कश्मीर तक की माल स्पलाई बंद

किसान आंदोलन के कारण अंबाला-लुधियाना ट्रैक 7 दिन से बंद, कश्मीर तक की  माल स्पलाई बंद

अंबाला-लुधियाना रेल मार्ग को किसानों ने बीते सात दिनों से पूरी तरह से बंद कर रखा है। इस मार्ग से पंजाब ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख तक जरूरत के सामान को रेलवे पहुंचाता है। खासकर कोयला, रसद और ईंधन जैसे सामान को तो हर सूरत में पहुंचाना ही होता है, क्योंकि पंजाब में पॉवर प्लांट के लिए कोयले की जरूरत होती है। अगर कोयले की सप्लाई बाधित हुई तो पंजाब हरियाणा में बत्ती गुल हो सकती है।

ऐसे में सात दिनों से अंबाला लुधियाना रेल मार्ग बंद होने से रेलवे को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है। अधिकारी देशहित में अलग-अलग प्रकार की रणनीतियों को बनाकर किसी तरह से इस सप्लाई को सुचारू किए हुए हैं। इसके लिए रेलमार्ग को लुधियाना से जोड़ने के लिए अलग से रूट बनाकर इस ट्रेक से ट्रेन को भेजा जा रहा है। मगर यह व्यवस्था कितने दिन तक चलेगी इसका किसी को अंदाजा नहीं है। ऐसे ही हाल रहे तो रेलवे के लिए भी नए मार्ग से सप्लाई देना कठिन होगा।

दर्जनों ट्रेनें रद्द होने से यात्रियों को इस रूट पर काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। इसी प्रकार माल भेजने का कार्य भी शुरुआत में प्रभावित रहा मगर अब इसे नए रूट से सुचारू कर दिया गया है। जिसमें रेलवे को 100 किलोमीटर अतिरिक्त चक्कर काटना पड़ रहा है। इस दूरी के बढ़ने से समय और खर्चा दोनों बढ़ गया है। अभी अंबाला से चंडीगढ़, चंडीगढ़ से मोहाली, मोहाली से न्यू मोरिंडा और फिर न्यू मोरिंडा से कुछ गाड़ियों को सरहिंद की तरफ मोड़ दिया जाता है।

जो आगे जाकर अंबाला लुधियाना वाले रेलमार्ग से जुड़ जाती है। वहीं कुछ गाड़ियों को सरहिंद से साहनेवाल होते हुए लुधियाना भेजा जा रहा है। अंबाला मंडल के रेलवे अधिकारियों ने दूसरा काम यह किया कि दिल्ली मंडल को प्रार्थना कर कुछ गाड़ियों को दिल्ली से जाखल, धूरी, गिल व लुधियाना होते हुए गाड़ियों को भेजा जा रहा है। ऐसे में इन मार्गों से रेलवे से 130 के करीब ट्रेनों का संचालन हाल ही में किया है। इसी के साथ मालवाहक गाड़ियों को भी साथ इन्हीं रूटों पर चलाया जा रहा है।

रेलवे की मानें तो पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख तक के लिए कोयला, पैट्रोलियम, फुटवियर, सीमेंट, रसद सामग्री आदि की सप्लाई रेलवे करती है। अब जब रेलमार्ग बंद होने से ट्रेनों के रूट में परिवर्तन हुआ है तो जिसमें 100 किलोमीटर का जो फेर बढ़ा है इसका भार अभी तक रेलवे के कंधों पर ही है। क्योंकि रेलवे माल को भेजने वालों से अभी तक अतिरिक्त भाड़ा नहीं ले रहा है। ऐसे में कब तक रेलवे के कंधों पर भार रहेगा यह चिंता की बात है।