‘क्या माफीनामे का आकार भी आपके विज्ञापनों जितना बड़ा था?’ बाबा रामदेव से सुप्रीम कोर्ट का सवाल

‘क्या माफीनामे का आकार भी आपके विज्ञापनों जितना बड़ा था?’ बाबा रामदेव से सुप्रीम कोर्ट का सवाल

मंगलवार को पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से सुप्रीम कोर्ट ने कई तीखे सवाल किए। खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के माफीनामे को लेकर तीखी टिप्पणी की।पतंजलि आयुर्वेद से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आपकी ओर से अख़बारों में प्रकाशित सार्वजनिक माफी भी ‘उनके विज्ञापनों जितनी बड़ी’ थी।इस पर पतंजलि आयुर्वेद की ओर पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि उन्होंने 67 अखबारों में इसे प्रकाशित करवाया। इसकी कीमत लाखों में है।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने 30 अप्रैल तक सुनवाई स्थगित कर दी और पतंजलि को माफीनामे वाले विज्ञापनों की प्रति रिकॉर्ड पर लाने के लिए कहा।

जस्टिस हिमा कोहली ने कहा

"वास्तविक अखबार की कतरनें काट लें और उन्हें अपने पास रखें। आप उन्हें बड़ा करके फोटोकॉपी करेंगे तो हो सकता है कि हम प्रभावित न हों। हम विज्ञापन का वास्तविक आकार देखना चाहते हैं। जब आप माफी मांगते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमें देखना होगा। यह माइक्रोस्कोप द्वारा है।"

बीते साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए वचन के उल्लंघन में भ्रामक मेडिकल विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद, इसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण और सह-संस्थापक बाबा रामदेव के खिलाफ अवमानना मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच विचार कर रही है । रामदेव और बालकृष्ण दोनों व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित थे।

बेंच ने FMCG कंपनियों की ओर से किए गए भ्रामक स्वास्थ्य दावों के बड़े मुद्दे का पता लगाने का भी अपना इरादा जताया और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी मामले में पक्षकार बनाया।

बेंच ने आयुष मंत्रालय की ओर से जारी उस पत्र के संबंध में भी केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है, जिसमें राज्यों से औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 के तहत आयुष उत्पादों के विज्ञापन के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज करने को कहा गया था।

सरकार से सवाल करते हुए जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि आपको यह बताना होगा कि एडवरटाइजिंग काउंसिल ने ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ क्या किया? सदस्यों ने भी ऐसे उत्पादों का समर्थन कैसे किया? आपके सदस्य दवाइयां लिख रहे हैं. जिस तरह का कवरेज हमने देखा है। अब हम सभी को देख रहे हैं। हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं को देख रहे हैं और किसी को भी धोखा नहीं दिया जा सकता। केन्द्र सरकार को इस पर जागना चाहिए।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने याचिकाकर्ता, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को कहा कि उन्हें भी ‘अपना घर व्यवस्थित करने’ की जरूरत है। क्योंकि डॉक्टरों की ओर से (IMA सदस्यों) की ओर से कथित अनैतिक आचरण की शिकायतें मिली हैं। मामले में बेंच ने IMA को एक पक्ष के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया

वहीं इससे पहले कोर्ट ने पतंजलि और रामदेव की ओर से दायर माफी के हलफनामे को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि वे अयोग्य या बिना शर्त नहीं थे। पिछली तारीख पर बेंच ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से व्यापक पूछताछ की जिसके बाद दोनों ने व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी 10 अप्रैल की सुनवाई में ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज(आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उत्तराखंड राज्य के अधिकारियों को भी फटकार लगाई।