हिमालय पुत्र कहलाने के लिए हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे गुण भी तो हों

हिमालय पुत्र कहलाने के लिए हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे गुण भी तो हों
स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा पर जारी डाक टिकट

आज हिमालय पुत्र हेमवती नन्दन बहुगुणा जी की पुण्यतिथि है, इस अवसर पर में उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। बहुगुणा जी वास्तव में हिमालय पुत्र थे, क्योंकि उनके मन में हमेशा पहाड़ के लिये पीड़ा बसी थी और जब वह पीड़ा का समाधान करने लायक हुए तो किया भी। उन्होंने उ0प्र0 का मुख्यमंत्री बनते ही उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों के लिए एक अलग विभाग का गठन किया और खास पहाड़ के लिये सभी विभाग पर्वतीय विकास मंत्रालय के अधीन कर दिए, जिससे उपेक्षित पड़े पहाड़ के विकास के रास्ते खुले। उन्होंने पहाड़ में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया, छोटे से बड़े सभी अशासकीय विद्यालयों का प्रान्तीयकरण कर शिक्षार्थी से लेकर शिक्षक तक को लाभ पहुंचाया। पहाड़ की भूमि को सिंचित कराने के लिए लघु सिंचाई विभाग के माध्यम से पूरे पहाड़ में सरकारी गूलों का जाल बिछाने का श्रेय भी उन्हीं को है।

वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इलाहाबाद में उन्होंने छात्रों का नेतृत्व किया। इसके साथ ही साथ वह एक विकट पहाड़ी भी थे, जो टूट सकता है, झुक नहीं सकता। संजय गांधी के सामने जब कांग्रेस के सभी नेता नतमस्तक थे, तब उन्होंने संजय के किसी मामले में दखल देने पर कहा कि इसे मैं औऱ तुम्हारी माँ देख लेंगे। बाद में दरार चौड़ी होने पर गढ़वाल के चुनाव में उन्होंने इंदिरा गांधी को पटखनी भी दी। 

आजकल के कुछ नेता भी अपने चमचों से अपने आप को हिमालय पुत्र, पर्वत पुत्र बुलवा रहे हैं, लेकिन हिमालय पुत्र होने के लिए हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसी पहाडियत, हिम्मत, ख़ुद्दारी और सोच होनी चाहिये। (राज्य आंदोनलनकारी पंकज महर की फेसबुक वॉल से साभार)