उच्चतम न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई चार अक्टूबर तक टाली

उच्चतम न्यायालय ने सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई चार अक्टूबर तक टाली

दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। उनकी जमानत याचिकाओं पर अब अक्टूबर में सुनवाई होगी।  

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े दो मामलों में आम आदमी पार्टी (आप) नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई चार अक्टूबर के लिए टाल दी। इस दो मामलों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले को तब स्थगित कर दिया जब सिसोदिया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि उन्हें मामले पर बहस करने के लिए दो से तीन घंटे का समय चाहिए।

सिंघवी ने कहा, ‘‘मैं जेल में हूं। हम (दोनों पक्ष) सहमत हैं। मेरी तरफ से सुनवाई में कम से कम 2-3 घंटे लगेंगे। इस मामले पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।’’अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू उनकी बात से सहमत हुए।

सिंघवी ने यह भी आरोप लगाया कि जब भी यह मामला या सत्येन्द्र जैन का मामला सामने आता है तो मामले के गुण-दोष को लेकर अखबार में लेख छपते हैं।शीर्ष अदालत ने 14 जुलाई को मामलों में सिसोदिया की अंतरिम जमानत याचिका पर सीबीआई और ईडी से जवाब मांगा था।

उपमुख्यमंत्री के तौर पर सिसोदिया के पास कई विभागों का जिम्मा था जिसमें आबकारी विभाग भी शामिल था। सीबीआई ने 26 फरवरी को सिसोदिया को ‘‘घोटाले’’ में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था। तब से वह हिरासत में हैं।

ईडी ने तिहाड़ जेल में उनसे पूछताछ के बाद नौ मार्च को सीबीआई की प्राथमिकी से जुड़े धन शोधन के मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।

उच्च न्यायालय ने 30 मई को सीबीआई मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री होने के नाते वह एक ‘‘हाई-प्रोफाइल’’ व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

उच्च न्यायालय ने तीन जुलाई को दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ आरोप ‘‘बहुत गंभीर प्रकृति’’ के हैं।

उच्च न्यायालय ने 30 मई के अपने आदेश में कहा था कि कथित घोटाला होने के समय सिसोदिया विभाग के प्रमुख थे, इसलिए वह यह नहीं कह सकते कि उनकी कोई भूमिका नहीं थी।