इसे क्या कहें? सड़क..! पर सड़क तो ऐसी नहीं होती

इसे क्या कहें? सड़क..! पर सड़क तो ऐसी नहीं होती
इसे क्या कहें? सड़क..! पर सड़क तो ऐसी नहीं होती

बागेश्वर (मोहन गिरि): आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश में किस गति से विकास हो रहा है ये जानना हो तो उत्तराखंड के सुंदर पहाड़ों का रुख कर लीजिए। यहां लोकतंत्र के नाम पर आमजन से चुनावी दंगल में मनमोहक लुभावने वादे कर उनके वोट तो डकार लिए जाते हैं और लेकिन चुनाव जीतते ही वादे और घोषणाएं या तो ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है या फिर इतनी सुस्त गति से काम होता है कि जनता आये दिन 'विकास' की इस चक्की में पिसती चली जाती है। चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि तो देहरादून या दिल्ली की मखमली घास वाली कोठियों में पहुंच जाते हैं और जनता वादों और अपने अभावों की दुश्वारियों के साथ जीने को मजबूर ही रह जाती है। इसके बाद कहा जाता है पहाडों से पलायन हो रहा है, गांव खाली हो रहे हैं। तो जनाब इस बदहाली में कौन रहना बर्दाश्त करेगा? थोड़ी सी भी जिसकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी वह क्यों इन अभावों में खुद को तड़पाएगा। इसी बदहाली, बेबसी और नेताओं के झूठे वादों की एक और बानगी देखि लीजिए।

 बागेश्वर जिले दूरस्थ गांव मजकोट के बाशिंदे आज भी एक बेहतर सड़क की मांग को लेकर कभी उपजिलाधिकारी, कभी जिलाधिकारी, कभी निर्माणदायी संस्था तो कभी सरकार के विभिन्न जनप्रतिनिधियों दफ्तरों में अपनी चप्पलें घिस रहे हैं। सड़क के हाल आप फोटो में देख चुके हैं,बाकी आगे वीडियो में भी देख लीजिएगा। एक अदद बेहतर सड़क के लिए आमजन तरस रहा है बाकी की तो पूछिए मत। सिस्टम की सुस्ती का आलम यह है कि 90 के दशक से सड़क की मांग कर रहे ग्रामीणों की मुराद 2004 में पूरी हुई। इस साल मजकोट सड़क को स्वीकृति मिली लेकिन निर्माण कार्य शुरू हुआ 2007-08 में। सिस्टम की सुस्ती यहां भी बरकरार रही और लोक निर्माण विभाग द्वारा 11 किमी सड़क काटने में 4 साल से ऊपर का समय लगाया गया। लेकिन 9 साल बाद भी सड़क पर डामरीकरण नहीं हो सका है।

अब PMGSY से सड़क के डामरीकरण की उम्मीद जगी तो ठेकेदारों ने मामले को कोर्ट तक पहुंचा दिया लेकिन इन सब के बीच जनता खुद को हताश और निराश महसूस कर रही है ऐसे में ग्रामीण भी चुनाव बहिष्कार का मन बना चुके हैं और सड़क पर डामरीकरण न होने की दशा में जनप्रतिनिधियों के गांव में बहिष्कार करने का मन बना चुके हैं। सबसे बड़ी और तारीखी बात यह है कि ये गांव अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा जी ने गोद लिया है जहां गांव की जनता गाड़ियों को धक्का लगाकर गंतव्य तक पहुंचा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इस आस में सांसद से गांव गोद लिवाया था कि कुछ विकास हो ही जाए लेकिन अभी तो हालात जस के तस ही हैं। देखें वीडियो