विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे, एम्स में इलाज के दौरान ली अंतिम सांस

विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे, एम्स में इलाज के दौरान ली अंतिम सांस
स्व. सुंदरलाल बहुगुणा (File)

ऋषिकेश: चिपको आंदोलन के प्रणेता और विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। वे 94 वर्ष के थे। कोरोना संक्रमण के चलते वे पिछले कुछ दिनों से ऋषिकेश एम्स में भर्ती थे।  महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने गुरुवार को उनकी कुशलक्षेम की जानकारी ली थी और स्वास्थ्य लाभ की कामना की। चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को उत्तराखंड के मरोडा सिलयारा (टिहरी गढ़वाल) में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए वह लाहौर चले गए और वहीं से स्नातक किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से मिलकर वे दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उन्होंने उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। 1987 में उन्हें राइट लाइलीहुड सम्मान और 2001 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।

सीएम तीरथ ने दी श्रद्धांजिल

बहुगुणा जी के निधन पर उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने लिखा है "चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।"

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