थराली : नियमों का हवाला देकर हो रहा है मीडिया के अधिकारों का हनन

थराली : नियमों का हवाला देकर हो रहा है मीडिया के अधिकारों का हनन
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थराली (मोहन गिरी): उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक अशोक कुमार लगातार मीडिया से बातचीत के दौरान पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर थाना क्षेत्रों में प्रभारियों को तक स्थानीय पत्रकारों से समन्वय और घटनाक्रमों की जानकारी साझा करने के साथ ही मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने की बात कह चुके हैं लेकिन लगता है पुलिस महानिदेशक के निर्देशों को उत्तराखंड की मित्र पुलिस के कई थाना प्रभारियों को गले नही उतर रही है।
 मामला चमोली जिले का है जहां थराली थाना प्रभारी मीडिया से बात करना तो दूर छोटी हो या बड़ी घटनाओं में पत्रकारों को आधिकारिक पुष्टि और मीडिया बाइट देने पर भी नियमों का हवाला दे रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को तो साहब सीधे मुंह कह देते हैं कि डीजीपी साहब के निर्देशों के अनुसार वे बाइट देने में सक्षम हैं ही नहीं। अलबत्ता थाना प्रभारी महोदय वही बयान अखबार हो या टीवी चैनल सभी एजेंसियों के प्रेस प्रतिनिधियों को टेलीफोन पर दे देते हैं। अब टीवी पत्रकारों के पल्ले ये बात नहीं पड़ रही है कि जिस बयान को थाना प्रभारी महोदय टेलीफोन पर दे सकते हैं उसी बयान को कैमरे पर बोलने में भला क्या दिक्कत ?
बहरहाल जिन आदेशों का हवाला थाना प्रभारी थराली दे रहे हैं उनका पालन चमोली जिले के अन्य थाना क्षेत्रों में तैनात थाना प्रभारी भी करते होंगे? लेकिन अन्य थानों के थाना प्रभारी प्रेस को ब्रीफ करते हैं। ताजा मामला गैरसैंण का है जहां पोस्ट ऑफिस से 32 लाख की चोरी के मामले में थानाध्यक्ष गैरसैंण मीडिया से मुखातिब हुए थे और चोरी का खुलासा किया था वहीं दूसरा मामला पोखरी का है जहां थानाध्यक्ष ने दुर्घटनाओं पर मीडिया के सामने बयान दिया। 
उत्तराखंड के अधिकांश थानाप्रभारी मीडिया के सम्मुख बयान दे रहे हैं घटनाक्रम की जानकारी दे रहे हैं लेकिन भला अकेले थाना थराली के लिए लागू ये नियम कैसा या फिर अगर आदेश सही है तो फिर अकेले थराली थाने के अलावा अन्य थाना क्षेत्रों में इस आदेश का पालन क्यों नही किया जा रहा है? ये अपने आप में बड़ा सवाल है। साथ ही इससे मीडिया की स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन जरुर हो रहा है।