दून में पत्रकारों के लिए एफोर्डेबल हाउस की तैयारी

दून में पत्रकारों के लिए एफोर्डेबल हाउस की तैयारी
दून में पत्रकारों के लिए एफोर्डेबल हाउस की तैयारी

पत्रकारिता और पत्रकारों को लेकर आज सवाल उठ रहे हैं। वास्तविकता यह है कि आज भी 90 प्रतिशत पत्रकार ईमानदार हैं और अपने पेशे के प्रति समर्पित हैं। यह बात अलग है कि उनके मालिक या उनके संपादक उनकी ईमानदारी को व्यवसायिकता के तराजू पर तोल कर स्वयं लाभ उठा लेते हैं। कोरोना काल में पत्रकारों की आर्थिक दशा किसी से छिपी हुई नहीं है। अधिकांश पत्रकार बेरोजगार हो गये हैं या उनका वेतन कम कर दिया गया है। ऐसे में इन पत्रकारों का जीवन और अधिक कठिन हो गया है।
मेरा देहरादून के पत्रकारों से नियमित मिलना होता है। उनकी पीड़ा है कि कम वेतन में किराये का मकान, बच्चों के स्कूल की भारी फीस और अन्य खर्चे उनके लिए चिन्ता का विषय होते हैं। दूसरे राज्यों में पत्रकारों के लिए पत्रकार कालोनियां हैं। पत्रकारों को सरकारों ने सरकारी आवास मुहैया कराए हैं। या कम कीमत पर जमीन या फ्लैट उपलब्ध कराते हैं लेकिन उत्तराखंड में पत्रकारों को भी हाशिए पर रखा गया है। सरकारों ने पत्रकारों को उपेक्षित किया है।
पत्रकार कल्याण कोष होते हुए भी पत्रकारों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरसना पड़ रहा है।  पत्रकारों की इसी पीड़ा को देखते हुए मैंने तय किया है कि जल्द ही पत्रकारों के लिए सस्ते आवासीय भवन निर्माण करूंगी। मैंने और मेरे दिल्ली और लखनऊ के कुछ साथियों ने हाल में हरिद्वार में पतंजलि के निकट हरिद्वार पैराडाइज प्रोजेक्ट लांच किया है। यह एफोर्डबल हाउस योजना है और इसके तहत पीएम आवासीय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इसी तरह की योजना अब देहरादून में पत्रकारों के लिए भी लांच की जाएगी ताकि पत्रकारों और उनके परिवारों का अपना घर का सपना साकार हो सके और उन्हें मकान का किराया न देना पड़े।
इस बीच लखनऊ के उद्यमी दोस्त देहरादून आए और उन्होंने कहा कि मुझे प्रेस कांफ्रेंस करनी है। उन्होंने प्रेस क्लब में प्रेसवार्ता के लिए कहा। लेकिन देहरादून में एक अच्छा प्रेस क्लब है ही नहीं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तराखंड में स्टेट लेवल का कोई भी प्रेस क्लब नहीं है। जो प्रेस क्लब है वह इतना स्तरीय नहीं है कि वहां कोई अच्छा बिजनेसमैन प्रेसवार्ता करे। मेरा कहना है कि राज्य सरकार को पत्रकारों के लिए अच्छा प्रेस क्लब और आवासीय कालोनी बनानी चाहिए थी, लेकिन सरकारों ने पिछले 20 साल में पत्रकारों के हित में कुछ भी काम नहीं किया, जबकि पत्रकार लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ है। जब मैंने देहरादून में प्रेस क्लब न होने की बात अपने उद्यमी दोस्त को बतायी तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उनका कहना था कि यदि सरकार प्रेस क्लब और पत्रकारों के लिए कुछ जमीन अलाट करें तो वो भी कुछ सहयोग करेंगे। मेरा मानना है कि यदि पत्रकारिता को जिंदा रखना है और जन हित की बात करनी है तो पत्रकारों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी देनी होंगी। कलम के सिपाही को सम्मान के साथ यदि आवास और क्लब की सुविधा मिल जाएं तो इससे प्रदेश हित भी होगा और निवेशकों की मीडिया के साथ संवाद की समस्या का भी समाधान होगा।मैंने तय किया है कि पत्रकारों के लिए आवासीय कालोनी और प्रेस क्लब के लिए पत्रकारों के साथ मिलकर काम करूंगी और इस मुद्दे पर सरकार से भी बात की जाएगी कि पत्रकारों के लिए जमीन का अलाटमेंट किया जाएं ताकि पत्रकारों को सस्ते आवास मिल सकें।

(राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे की कलम से)