उत्तराखंड की सियासत में फिर 'मारीच' सबित हुआ मार्च

उत्तराखंड की सियासत में फिर 'मारीच'  सबित हुआ मार्च
उत्तराखंड की सियासत में फिर मरीच सबित हुआ मार्च

देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर से मार्च का माह 'मारीच' साबित हुआ है। हरीश रावत की ही तरह त्रिवेन्द्र सिंह रावत को भी बिना कार्यकाल पूरा किए मार्च में सत्ता से ही विदा होना पड़ा है। बीते चार साल से लगातार उत्तराखंड की राजनीति में सीएम को बदलने की चर्चाएं जोर पकड़तीं और उसी जोर से ठंडी भी हो जातीं, लेकिन इस बार चर्चा तो हल्की उठी लेकिन धमाका बड़ा कर गई। सूबे के सीएम के रूप में त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने को साबित करने में चार साल लगाए लेकिन उत्तराखंड के मतदाताओं में उनकी छवि बेहतर बन नहीं पाई। पिछले दिनों जब एक सर्वे में उनको देश का सबसे अलोकप्रिय मुख्यमंत्री चुना गया तो रही सही कसर भी पूरी हो गई। गैरसैंण सत्र के दौरान नंद प्रयाग-घाट के प्रदर्शनकारियों पर जिस बेरहमी से पुलिस ने लाठीचार्ज किया, महिलाओं तक को नहीं बख्शा उसने भी सीएम त्रिवेन्द्र की साख पर बट्टा लगाया। शोसल मीडिया में इसके खिलाफ बेहद तल्ख तेवर लोगों ने दिखाए।

सीएम त्रिवेन्द्र को हटाने के कारण जो भी रहे हों विडम्बना ही है कि उत्तराखंड का एक और मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी को अपवाद मान लें तो मध्यावधि में मुख्यमंत्री बदलना उत्तराखंड की नियति बन गई है। पिछली बार मात्र पांच माह के लिए मुख्यमंत्री बने भगत सिंह कोश्यारी को इस बार 12 माह मिलेंगे। इस छोटी अवधि में उनको उत्तराखंड की जन आकाक्षाओं को भी पूरा करना होगा और 2022 के विधानसभा चुनावों का भी सामना करना होगा।