क्या मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करने में मूल सिद्धांत भूल गया कोर्ट?

क्या मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करने में मूल सिद्धांत भूल गया कोर्ट?

क्या सुप्रीम कोर्ट दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करने में मूल सिद्धांत भूल गया. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने सवाल उठाए हैं. बता दें कि सिसोदिया शराब नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामले में जेल में बंद हैं. उन्हें 26 फरवरी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. सिसोदिया की मुश्किल उस समय बढ़ गई, जब 30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी।

एक इंटरव्यू के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी. लोकुर से आप नेता मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करने को लेकर सवाल किया गया. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आम तौर पर ऐसा लगता है कि अदालतें जमानत देने या इनकार करने के मूल सिद्धांतों को भूल गई हैं. उन्होंने कहा कि आजकल, यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि वह कम से कम कुछ महीनों के लिए जेल में रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने इसके साथ ही पुलिस जांच पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि पुलिस पहले व्यक्ति को गिरफ्तार करती है, फिर गंभीरता से जांच शुरू करती है. उन्होंने कहा कि एक अधूरा आरोप पत्र दायर किया जाता है. उसके बाद एक पूरक आरोप पत्र दायर किया जाता है और दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जाते हैं. यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है. परेशान करने वाली बात यह है कि कुछ अदालतें इस पर गौर करने को तैयार नहीं हैं।

केंद्र और राज्य सरकार पर हमेशा से जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन, इस पर न्यायपालिका को कैसा रुख अपनाना चाहिए? जब जस्टिस लोकुर से यह सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को जीवन की वास्तविकताओं के प्रति जागने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कानून की किताबें पूरी कहानी नहीं बताती हैं. जस्टिस लोकुर ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के मामलों में विवेकाधीन शक्ति के इस्तेमाल के लिए कई फैसलों में बुनियादी सिद्धांतों को अपनाया है. समस्या यह है कि कुछ अदालतें इन बुनियादी सिद्धांतों को लागू नहीं करती हैं. जबकि, उन्हें पता यह सब पता होता है. हालांकि, सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है?