103 साल की उम्र में भी फौलादी हौंसला रखते हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट

103 साल की उम्र में भी फौलादी हौंसला रखते हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट

जितेन्द्र पंवार (चमोली): देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से बगावत कर नेता सुभाष चन्द्र बोस की सेना में शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ने वाले 103 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट आज भी तंदुरुस्त है। शरीर पर भले ही आज उनके उम्र के निशान झलकते हैं लेकिन देश के प्रति जोश और जज्बा आज भी किसी नौजनवान से कम नहीं है । स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक युवा सेना का हिस्सा बनें और देश की सेवा करे ।

देश की आन बान और शान के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नेता सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सेना में शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले 103 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट का जन्म 18 जनवरी 1918 को चमोली जिले के श्रीकोट गांव में एक किसान के घर में हुआ था।  बचपन से ही मन में देश की आजादी का सपना पाले बख्तावर सिंह बिष्ट सन 1940 में गढ़वाल राइफल में भर्ती होकर सेना का हिस्सा बने । आजादी से पूर्व सेना में भर्ती होने के 5 साल बाद उन्होंने 1945 में ब्रिटिश सेना से बगावत कर नेता सुभाष चन्द्र बोस की सेना INA में शामिल हो गए ।
 103 वर्षीय बख्तावर सिंह बिष्ट ने बातचीत में हमें बताया कि "अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हमने उस समय लड़ाई लड़ी थी जब हमारे पास हथियार भी ना के बराबर हुआ करते थे। एक तरफ अंग्रेजी सरकार थी और दूसरी ओर हम अब आप अंदाजा लगा सकते है कि हमने किन परिस्थितियों में अंग्रेजो से लड़ाई लड़ी होगी। ब्रिटिश सरकार से लड़ाई लड़ते हुए मुझे एक साल तक ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कलकत्ता जेल में कैद किया गया"।
उन्होंने आगे बताया कि "देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से बगावत करने के आरोप में 1946 में मुझे फ़ौज से हटा कर घर भेज दिया , धीरे धीरे देश की आजादी के लिए आवाज बुलंद होती गयी नतीजन ब्रिटिश सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस की सेना के आगे घुटने टेक दिए जिसके बाद सन 1947 में देश अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया।"
 देश की आजादी के बाद 1948 में बख्तावर सिंह पीएससी में भर्ती हुए , और 27 साल पीएसी की सेवा करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह बिष्ट से सेवा निवृत हुए।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बख्तावर सिंह आज 103 वर्ष के हो चुके हैं । लेकिन देश के प्रति जोश, और जज्बा आज भी उनके मन में कम नहीं हुआ है । वर्तमान समय मे बख्तावर सिंह बिष्ट चमोली जिले में इकलौते जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं । ईश्वर की कृपा और ईष्ट देवताओं के आशीर्वाद से 103 वर्ष की उम्र में वे आज भी सेना के जवानों की तरह सुबह 4 बजे उठ कर घर के सदस्यों को जगाते हैं । घर के आसपास घूमना व समाजिक जीवन मे होने वाली गतिविधियों की जानकारी रखने के लिए वे आज भी टीवी में समाचार सुनते और बिना चश्मे के अखबार पढ़ते हैं । 
सुबह का नाश्ता करने के बाद वे नाती पोतों की देखरख कर उन्हें देश प्रेम की बातें भी सिखाते हैं । सीमा पर बढ़ते तनाव की बाते सुनकर आज भी उनका खून खौलने लगता है , वे कहते है कि भले ही आज मेरा शरीर बूढ़ा जरूर हो गया है , मगर आज भी  अगर देश की रक्षा के लिए बन्दूक उठाने की नोबत आ जाय तो मैं आज भी पीछे नही हटूंगा।  स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश  के युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि नशे से दूर रहकर अधिक से अधिक युवा सेना का हिस्सा बने , देश की आन बान और शान के लिए अगर जान भी देनी पड़े तो पीछे नही हटना।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 103 वर्षीय बख्तावर सिंह बिष्ट की तीन बेटियां है । अब वह अपनी मंझली बेटी के परिवा के हिस्सा हैं। बेटा न होने का उन्हें कोई गम न हो इसलिए उनकी बेटी और दामाद उन्हें कोई कमी नहीं होने देते। देश के प्रति अपने जान की परवाह न करने वाले ऐसे जांबाज को हम दिल से सलाम करते है। जय हिन्द!