अब अफसरों पर "कमा कर" देने का नहीं बल्कि काम करके देने का दबाव होता है

अब अफसरों पर "कमा कर" देने का नहीं बल्कि काम करके देने का दबाव होता है
CM Trivendra Singh Rawat (File Pic)

देहरादून: उत्तराखंड में अब जिलों के पुलिस कप्तानों और जिलाधिकारियों की नियुक्ति अब नेताओं के दबाव या फिर नीलामी के जरिए नहीं होती है। न ही यहां के अफसर ताश के पत्तों की तरह ही फेंटे जाते हैं, यही नहीं नए और युवा अफसरों को जिले में जल्द और लंबे समय के लिए पोस्टिंग दी जाती है। यहां अब अफसरों पर "कमा कर" देने का नहीं बल्कि काम करके देने का दबाव होता है। इस नए युग का सूत्रपात हुआ 2017 में जब सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के रुप में उत्तराखंड की कमान संभाली। तब नौसिखिए कहे जा रहे त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अधिकारियों पर न केवल विश्वास जताया बल्कि युवा और तेज तर्रार अफसरों को जिलों की कमान देकर उनका मनोबल बढ़ाया। यही वजह है कि आज उत्तराखंड के विभिन्न जिलों के अफसर अपने काम की वजह से पहचाने जाते हैं। उनकी कार्यप्रणाली के चर्चे न केवल प्रदेश बल्कि केन्द्र सरकार तक भी हैं तभी तो हाल ही में उत्तराखंड के एक लोकप्रिय जिलाधिकारी रहे मंगेश घिल्डियाल को प्रधानमंत्री कार्यालय में नियुक्त किया गया है। मंगेश घिल्डियाल ने रुद्रप्रयाग और टिहरी का जिलाधिकारी रहते हुए स्वयं को साबित किया और यह अवसर उनको त्रिवेन्द्र सरकार ने दिया। वह लगभग तीन साल तक रुद्रप्रयाग और फिर टिहरी के जिलाधिकारी रहे। यदि पिछली सरकारों की तरह साल भर या छ: माह में उनका ट्रांसफर कर दिया जाता तो शायद उनकी क्षमताओं का लाभ प्रदेश की जनता को नहीं मिल पाता। इसी तरह के और भी कई युवा अफसर हैं जो न केवल अपनी क्षमताओं का उपयोग प्रदेश के लोगों की सेवा कर रहे हैं बल्कि इत्मीनान से अपना काम भी कर रहे हैं। उन पर कमाई करके देने का और बेवजह फेंटे जाने का दबाव नहीं है। इससे सूबे की नौकरशाही में स्थिरता आई है और अधिकारियों का मनोबल भी बढ़ा है जिसका लाभ अंतत: उत्तराखंड के आम जन को ही मिल रहा है।