कुमाऊं: सरकार के फैसले से पस्त हुई पहाड़ की लाईफ लाइन, संचालन हुआ अनिश्चितकाल के लिए ठप 

कुमाऊं: सरकार के फैसले से पस्त हुई पहाड़ की लाईफ लाइन, संचालन हुआ अनिश्चितकाल के लिए ठप 
कुमाऊं: सरकार के फैसले से पस्त हुई पहाड़ की लाईफ लाइन, संचालन हुआ अनिश्चितकाल के लिए ठप 

हल्द्वानी। पहाड़ की लाइफलाइन कही जाने वाली केमू बसों का संचालन अनिश्चितकाल के लिए ठप हो गया है। केमू एसोसिएशन ने 50 फीसदी यात्री और मूल किराए के साथ बसों का संचालन को लेकर असमर्थता जता दी है। अब बसों का संचालन किराया बढ़ोत्तरी, बीमा और टैक्स की माफ़ी पर ही होगा। पहाड़ में चलने वाली इन बसों का संचालन ठप होने से यात्रियों को निजी टैक्सियों पर निर्भर होना पड़ेगा। कोरोना संक्रमण के कारण अब पहाड़ की लाइफ लाइन कही जाने वाली केमू बसों के भी पहिए थम गए हैं। यह सेवा अब दोबारा कब तक शुरू हो सकेगी इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। हल्द्वानी और रामनगर से कुमाऊं मंडल के दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों के लिए यातायात का प्रमुख साधन केमू की बसें हैं। चाहे मुनस्यारी, बागेश्वर, धारचूला जाना हो या फिर पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा केएमओयू की बसें हर जगह यात्री पहुंचाती हैं। यहां तक कि पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में भी यही आवागमन का प्रमुख और सस्ता साधन है। मगर कोरोना का बढ़ते संक्रमण ने केएमओयू बस सेवा के पहिए थामने शुरू कर दिए हैं। इससे पहाड़ में चलने वाली करीब 300 बसें खड़ी हो गई हैं। बस सेवा के ठप होने का कारण आय न हो पाना है।
सरकार को उनकी स्थिति समझनी होगी
केएमओयू बस एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश डसीला का कहना है कि सरकार को उनकी स्थिति समझनी होगी। घाटे में चल रही केमू जैसे ही उभरने लगी तो कोरोना ने उनकी मुश्किलें दोबारा बढ़ा दीं। बसों में 50 फीसदी सवारी कर दी गई हैं, लेकिन किराया नहीं बढ़ाया गया। इस कारण बसें घाटे में चल रही हैं। तेल का खर्चा भी नहीं निकल पा रहा है। इसके अलावा न तो उन्हें बीमा में राहत दी जाती है और न ही टैक्स माफ किया जाता है। इसलिए बस सेवा को फि़लहाल बंद करने का फैसला लिया गया है। बताया कि प्रदेश महासंघ ने भी यह कदम उठाया है।
 रोडवेज को भी नहीं मिल रही सवारी
कोरोना महामारी के कारण अब रोडवेज को भी सवारियां नहीं मिल रही हैं। जिस वजह से उत्तराखंड परिवहन निगम सीमित रूटों पर पांच से दस सवारियों के साथ बसों का संचालन कर रहा है। रोडवेज बस स्टेशन प्रभारी रवि कापड़ी ने बताया कि पहाड़ी रूटों के लिए प्रवासियों या बाहरी राज्यों से जरूरी काम के लिए आने वाले लोगों को छोडक़र अन्य यात्री नहीं आ रहे हैं। ऐसे में तेल का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है। इसलिए सीमित रूटों पर ही बसों का संचालन हो रहा है।