मंत्री चंदन राम दास के निर्देश पर सोमवार से खुलेगी 8 साल से बंद कौसानी टी फैक्ट्री

मंत्री चंदन राम दास के निर्देश पर सोमवार से खुलेगी 8 साल से बंद कौसानी टी फैक्ट्री
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बागेश्वर। कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निर्देश पर उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड ने आठ साल से बंद पड़ी कौसानी की चाय फैक्टरी को सोमवार से फिर शुरू करने का निर्णय लिया है। फैक्टरी में चाय का उत्पादन शुरू होने से जहां काश्तकारों को लाभ होगा वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा।
कौसानी की चाय फैक्टरी 2014 से बंद चल रही थी। चाय श्रमिकों, भाजपा के जिलाध्यक्ष शिव सिंह बिष्ट, जिला पंचायत सदस्य जनार्जन लोहुमी आदि बंद फैक्टरी को पुन: संचालित करने की मांग के लिए संघर्षरत थे। बागेश्वर के विधायक और समाज कल्याण मंत्री चंदन राम दास ने शुक्रवार को पर्यटक आवास गृह बैजनाथ में टी बोर्ड के निदेशक हरवीर सिंह बवेजा से चाय फैक्टरी को पुन: संचालित करने के संबंध वार्ता की। मंत्री के निर्देश पर चाय विकास बोर्ड सोमवार से चाय फैक्टरी में चाय का उत्पादन करने पर राजी हो गया है। दास ने बताया कि फैक्टरी संचालित होने के बाद कौसानी की चाय को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में फिर पहचान मिलेगी। बोर्ड की मंत्री से हुई वार्ता के बाद टी बोर्ड से फैक्टरी की सफाई शुरू कर दी है। इधर, फैक्टरी पुन: संचालित कराने पर चाय श्रमिकों और स्थानीय लोगोंने मंत्री का आभार जताया है।
ये रहा कंपनी का सफर
वर्ष 1994-95 में कुमाऊं मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम में चाय प्रकोष्ठ की नींव रखी गई। करीब 10 किलोमीटर के दायरे में 211 हेक्टेयर जमीन का चयन चाय के बागान के लिए किया गया, मगर संसाधनों की कम उपलब्धता के कारण उस समय केवल 50 हेक्टेयर जमीन पर ही प्रकोष्ठ ने चाय बागान विकसित किए जो 2001 के आते-आते पूरी तरह से व्यावसायिक चाय बनाने के लिए तैयार हो गए। चाय की अच्छी फसल को देखते हुए 2001 में चाय प्रकोष्ठ ने एक निजी कंपनी गिरीराज को कौसानी में चाय की फैक्ट्री लगाने के लिए आमंत्रित किया।
सात जून 2001 को हुए एमओयू के मुताबिक, अनुबंध अगले 25 साल तक जारी रहेगा और चाय फैक्ट्री लगाने का 89 प्रतिशत खर्चा गिरीराज कंपनी को उठाना होगा।
बाजार में उतारी और फैक्ट्री हो गई बंद
2002 में 50 हेक्टेयर में विकसित चाय बागान से 70 हजार 588 किलोग्राम कच्ची पत्तियां उत्पादित हुईं, जिससे करीब 13 हजार 995 किलोग्राम चाय तैयार हुई। इसे उत्तरांचल टी के नाम से बाजार में उतारा गया। मुनाफा देख सरकार ने केएमवीएन और जीएमवीएन को इस कारोबार से हटाकर 2004 में उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का गठन किया। 2013 तक बोर्ड ने 211 हेक्टेयर भूमि में चाय का उत्पादन कर 2.50 लाख किलो कच्ची पत्तियां कंपनी को उपलब्ध कराईं। मगर अगले ही साल जून 2014 को फैक्ट्री ने दम तोड़ दिया।
एक हजार कर्मचारी हो गए बेरोजगार
चाय फैक्ट्री में एक हजार लोग कार्यरत थे। यहां स्थानीय लोगों को स्थायी व अस्थायी तौर पर रोजगार मिला था। चाय फैक्ट्री बंद होने से यह सभी बेरोजगार हो गए। कुछ समय तक कंपनी के खुलने का इंतजार करते रहे, लेकिन अब आस भी छूट गई। बेरोजगार इधर-उधर पलायन कर गए।