जल स्तर घटा तो झील से बाहर निकल आए उजाड़े गए लोहारी गांव के खंडहर

जल स्तर घटा तो झील से बाहर निकल आए उजाड़े गए लोहारी गांव के खंडहर
साभार Oneindia Hind

उत्तराखंड में देहरादून के कालसी ब्लॉक का लोहारी गांव अब जलसमाधि लेने के करीब सप्ताह भर बाद अब बिजली बननी शुरू हो गई है और जलस्तर घट चुका है। अब एक बार फिर से गांव के खंडहर झील से बाहर आ गए हैं। लेकिन इस बांध से उजड़े गांववालों के पास अब इसे देखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए गांव को जलसमा​धि दे दी गई है। अब गांव में रह रहे 70 से ज्यादा परिवार पास के ही एक स्कूल में रहकर ​सरकार से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। गांव वालों का सिस्टम और सरकार से एक ही सवाल है कि उनके साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया है, वह कहां तक सही है। अब देहरादून जिले के लोहारी गांव में यमुना नदी पर बनी जल विद्युत परियोजना से सालाना 330 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होना है। 120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ। 1777.30 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा है। देखें वीडियो


24 घंटे में गांव खाली करने का मिला था फरमान
5 अप्रैल को लोहारी गांव के लोगों को इस बात की सूचना मिली कि अगले 24 घंटे मेंं उन्हें गांव खाली करना है, जिसके बाद गांव में पानी आना शुरू हो जाएगा। आनन-फानन में ग्रामीणों ने अपने घरों के जरुरी सामान पास के स्कूल में पहुंचाया। अपने ही हाथों से बनाए घर को तोड़ा और पास के स्कूल में ही टेंट लगाकर विरोध करना शुरु किया। इस बीच धीरे-धीरे गांव जलमग्न हो गया।
बिजली बननी शुरू, जलस्तर हुआ कम
22 अप्रैल को जब वन इंडिया की टीम गांव पहुंची तो पता चला कि टरबाइन शुरू होने के कारण पानी का स्तर काफी कम हो गया। एक बार फिर गांव वाले अपने गांव पहुंचकर जरुरी सामान उठाने लगे। फिर उन यादों को ताजा करने लगे जो कि​ अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। शुक्रवार को पानी का जल स्तर कम हुआ तो ग्रामीण एक बार फिर खंडहर हो चुके गांव में बचे हुए सामान को लेने पहुंचे। चौखट निकालते हुए रणवीर चौहान ने कहा कि वे घर तो नया बना लेंगे लेकिन यहां से यादें जुड़ी हुई है, उसको वे कैसे संजोयेंगे। रणवीर बताते हैं कि बच्चों को रिश्तेदारों के घर छोड़कर वे स्कूल में समय काट रहे हैं। जब तक सरकार उनके विस्थापन की मांग को पूरा नहीं करती तब तक वे ऐसे ही स्कूल में रहकर अपना विरोध जताएंगे।
पास के स्कूल में रह रहे ग्रामीण
शुक्रवार को गांव में फिर से गांववाले अपनी पुरानी यादें ताजा करने पहुंचे। जिन खेत खलियानों में सालों गुजारे आज वे पानी में समा चुके हैं। जो भी फिर से गांव में पहुंचा उनकी आंखे भर आई। जलमग्न हो चुके गांव के पास ही एक पुराना स्कूल है, इस स्कूल में करीब 50 परिवार अब अपना समय काटने को मजबूर हैं। जितना संभव हो पाया, ग्रामीणों ने अपनी फसलें समेटी। अब स्कूल को ही अपना आशियाना बनाया हुआ है। जब तक पानी का स्तर कम है तब तक ये लोग यहीं रहकर अपनी जिंदगी का काटने की बात कर रहे हैं। स्कूल में ही टेंट लगा​या हुआ है। यहीं पर सामूहिक​ रुप से खाना बना रहे हैं। गांव की महिलाएं बताते हैं कि वे 20 से 22 साल पहले यहां शादी करके आए थे। लेकिन अब यहां से उन्हें जाना पड़ रहा है। इस गांव में उन्होंने अपने परिवार के साथ कई सपने देखे थे। अब बच्चों के भविष्य को लेकर वे चिंतित ​हैं। इस गांव में रहकर वे साथ पर्व और त्यौहार मनाते थे। लेकिन अब उनके देवी देवताओं और संस्कृति को छोड़कर वे दूसरी जगह न​हीं जाना चाहते हैं। 70 से ज्यादा परिवार को अब भी सरकार के किसी आश्वासन का इंतजार है। (Input साभार Oneindia Hindi )