साहब! बारिश से पहले जाग जाते तो किसी के घर का चिराग यूं न बुझता

साहब! बारिश से पहले जाग जाते तो किसी के घर का चिराग यूं न बुझता
साहब! बारिश से पहले जाग जाते तो किसी के घर का चिराग यूं न बुझता

मोहन गिरि (थराली) बीते कुछ रोज यानी 12 जुलाई को ग्वालदम- कर्णप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग पर लोल्टी गधेरे में एक दुर्घटना घटी। उस दिन सुबह से बारिश के चलते गधेरा उफान पर था और थराली कॉपरेटिव बैंक में कार्यरत एक बैंककर्मी (कैशियर) जल्दी बैंक पहुंचने के चक्कर में उफनते गधेरे को पार करते समय बाइक समेत बह गया। गधेरे से 100 मीटर की दूरी पर उसकी रायल इनफील्ड बाइक तो मिल गयी लेकिन बाइक सवार का शव घटना के 25 घण्टे बाद दुर्घटना स्थल से करीब आधे किमी दूर बैनोली के समीप मिला। बहरहाल ये तो थी घटना थी अब जानते हैं इस घटना के कारण। 
पहला कारण तो घटना का ये सीधे तौर पर माना जा सकता है कि बाइक सवार को जल्दबाजी नही दिखानी चाहिए थी, बैंक पहुंचने की जल्दी और भारी बारिश के बाद भी उफनते गधेरे को पार करने का विचार मात्र ही जोखिम भरा हो सकता है बावजूद इसके जोखिम लेना बाइक सवार के लिए जानलेवा साबित हुआ। लेकिन क्या सिर्फ पूरा दोष बाइक सवार का ही है? इका जवाब दूसरा सवाल दे सकता है कि अगर घटनास्थल पर गड्ढे नही बने होते तो ये भी तो हो सकता था कि बाइक सवार आखिरकार पार हो ही जाता? हो सकता है तब भी न हो पाता। अब आते हैं सबसे बड़े सवाल पर वो यह कि जब उक्त स्थल पर कार्यदायी संस्था ने पहले ही गधेरे के पानी के स्तर को कम करने के लिए सड़क के नीचे गार्डर डालकर निकासी की व्यवस्था की थी तो फिर बरसात से पहले इस व्यवस्था को सुचारू क्यो नहीं किया? ऐसी दशा में पानी बढ़ने पर भी बहुत न्यून मात्रा में पानी सड़क पर आता और हो सकता है ये घटना ही नहीं होती। ऐसा मैं तो कह ही रहा हूँ लेकिन खुद कार्यदायी संस्था बीआरओ भी इसे मानती है वरना घटना के 4 दिन बाद बीआरओ वही सब नही करती जो मैं ऊपर लिख चुका हूं। आज की तस्वीर और पुरानी तस्वीर के अंतर को समझिए बीआरओ ने घटना से सबक लेते हुए कहें या फिर स्व विवेक कहें या उच्चाधिकारियों की सलाह /फटकार कहें जो भी हो पानी की निकासी अंडरग्राउंड करने के साथ ही गड्ढे भी पत्थरो से भर दिए। लेकिन यही काम तब कर लिया जाता तो क्या उस बाइक सवार की जिंदगी बच नहीं जाती? 
हर बार हादसों का ही इंतजार क्यों? 
क्या हादसे होंगे ,कोई जान जाएगी ,किसी के घर का चिराग बुझेगा ,किसी के बच्चे यतीम होंगे ,किसी बहन की राखी बेबस होगी ,किसी मां की कोख उजड़ेगी तभी हम व्यवस्थाओं को सुधारेंगे? काश! तकनीकी तौर पर जानकारों ने ये व्यवस्थाएं मानसून की दस्तक से पहले सुधार ली होती तो आज उस बेचारे को यूं दुनियां से रुखसत न होना पड़ता। न ही उसका परिवार उजड़ता। दरअसल हमारी व्यव्सथा इतनी जड़ और बेजान हो चुकी है कि इसके लिए किसी की मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता। इंसानों को महज तादाद मानने वाली इस व्यवस्था में इंसान सिर्फ एक आंकड़ा भर बन कर रह गया है जो कभी भी कहीं भी जुड़ सकता है, मरने वालों में भी। हाय रे सिस्टम! अब तो तौबा करो कि हादसों का इंतजार न करने की बजाय इस बात पर जोर दें कि हादसे हो ही नहीं। देखें वीडियो

इस हाल में मिला था युवक का शव