2022 के लिए थराली सीट का सियासी गणित,भाजपा में दावेदारों की भरमार

2022 के लिए थराली सीट का सियासी गणित,भाजपा में दावेदारों की भरमार
2022 के लिए थराली सीट का सियासी गणित,भाजपा में दावेदारों की भरमार

थराली (मोहन गिरी): आगामी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर अब दावेदार पार्टी फोरम में अपनी अपनी दावेदारी मजबूत करने के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर विधानसभा क्षेत्रों में तक सक्रिय नजर आ रहे हैं लेकिन लगता है इस बार के विधानसभा चुनाव में दावेदारी को लेकर कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी असमंजस की स्थिति में आ सकती है। ये असमंजस की स्थिति क्या है इससे पहले आपको बता दें कि टिकट और दावेदारी का यही असमंजस उत्तराखंड गठन के बाद से ही लगातार कांग्रेस के लिए मुसीबत बनता आया है। लेकिन इस बार लगता है थराली सीट पर ये असमंजस की स्थिति भाजपा नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें खींच सकती है दरसल कांग्रेस में इस सीट पर दावेदारी को लेकर सिर्फ दो ही उम्मीदवार इस वक्त मैदान में नजर आ रहे हैं।

जिनमें सबसे पहला नाम है कांग्रेस के इस सीट से पूर्व विधायक और वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष डॉ जीतराम और दूसरा नाम है महेश शंकर त्रिकोटी का लेकिन इन दो नामों में भी डॉ जीतराम के नाम पर मुहर लगना लगभग तय है। हालांकि इसका केवल औपचारिक एलान होना ही अब बाकी रह गया है इसके पीछे की एक बड़ी वजह मानी जा रही है चुनाव से ठीक पहले पूर्व विधायक डॉ जीतराम का कद बढ़ाकर उन्हें पार्टी का कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाना वहीं उनकी मजबूत दावेदारी और टिकट की प्राथमिकता की दूसरी बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि डॉ जीतराम 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद 5000 से कम वोटों के अंतर से हारे हैं।

जबकि इसी मोदी लहर में कांग्रेस के कई दिग्गजों के साथ ही खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद दो दो सीटों से चुनाव हार गए थे। 2018 के उपचुनाव में जहां सत्तारूढ़ होने के बावजूद बीजेपी इस चुनाव को ज्यादा बड़े अंतर से नहीं जीत पायी और ये अंतर 50 फीसदी से कम तक आ गया यानी 2017 के मुकाबले 2018 में डॉ जीतराम अपनी हार का मार्जिन कम करने में सफल रहे। ऐसे में उम्मीद जताई जा सकती है कि कांग्रेस 2022 में फिर एक बार उनपर दांव खेल सकती है। डॉ जीतराम अपने कार्यकाल में किये गए विकास कार्यो को अपनी मजबूती बताते हैं लेकिन लगातार दो बार इस मजबूती के बाद भी डॉ जीतराम चुनाव में कमजोर ही साबित हुए हैं यानी उनकी यही मजबूती चुनाव में कमजोरी साबित हुई है।

भाजपा में दावेदारों की कतार लंबी

वहीं अब बात करें बीजेपी की तो बीजेपी में टिकट को लेकर दावेदारी के लिए कतार जरा लंबी नजर आ रही है इस फेहरिस्त में सबसे पहला दावा है थराली विधानसभा से 2018 उपचुनाव में विजय हासिल कर पहली बार उत्तराखंड की विधानसभा में पहुंचने वाली थराली की पहली महिला विधायक श्रीमती मुन्नीदेवी शाह जो वर्तमान में थराली से बीजेपी की विधायक हैं। मुन्नीदेवी शाह वर्ष 2014 में चमोली जिले की जिला पंचायत अध्यक्ष का पद भी सम्भाल चुकी हैं और हाल फिलहाल तक भी उनके राजनीतिक सितारे अलबत्ता मजबूत ही दिखाई दे रहे हैं क्योंकि एक ओर जहां  सिटिंग विधायक होने के नाते दावेदारी में उनका नंबर प्राथमिकता में बनता है। वहीं अगर पार्टी महिला दावेदारी वाली सीटो को एडजस्ट करने का सोचती है तो भी थराली से टिकट की दौड़ में भाजपा विधायक मुन्नीदेवी शाह बाजी मारने में कामयाब दिखाई देती हैं अब बात करते हैं सिटिंग विधायक मुन्नीदेवी शाह की मजबूती और अब तक के कार्यकाल की मुन्नीदेवी शाह के इस कार्यकाल की बड़ी उपलब्धियों में नारायणबगड़ सहित देवाल में महाविद्यालय खुलवाने के साथ ही ,नंदप्रयाग घाट डेढ़ लेन की घोषणा सहित सड़क निर्माण ,भवन निर्माण को लेकर कई ऐसी उपलब्धियां हैं जिन्हें बीजेपी विधायक विधानसभा चुनावों में भुना सकती हैं। 


वहीं बात कमजोरी की करें तो उपचुनाव की तरह सहानुभूति वोट की उम्मीद करना इस विधानसभा चुनाव में तर्कसंगत नहीं होगा ,वहीं अन्य दावेदारों की नाराजगी अगर बगावत का रूप ले लेती है तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

दावेदारों की इस फेहरिस्त में दूसरा नाम आता है थराली से पूर्व बीजेपी विधायक गोविंद लाल शाह का गोविंद लाल शाह अनुभवी हैं और इससे पूर्व भी 2002 से 2007 और 2007 से 2012 में पिण्डर के नाम से जानी जाने वाली इस सीट पर अपना परचम लहराकर दो बार विधायक बन विधानसभा तक पहुंचे हैं। हालांकि 2012 विधानसभा चुनाव  में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के हाथ से चुनाव की कमान  मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी को दिए जाने के बाद तत्कालीन विधायक गोविंद लाल शाह को टिकट से भी हाथ धोना पड़ा और टिकट जनरल खंडूरी के करीबी माने जाने वाले भाजपा नेता मगन लाल शाह को मिला लेकिन अब एक बार फिर थराली सीट पर गोविंद लाल शाह की सक्रियता उनकी दावेदारी को मजबूत कर रही है। 


मजबूती- दो बार विधायकी का अनुभव
कमजोरी -2012 के बाद से विधानसभा क्षेत्र में कम सक्रियता हालांकि चुनावो में पार्टी के साथ भी नजर आए।
वहीं इस फेहरिस्त में तीसरा नाम है बलवीर घुनियाल का बलवीर घुनियाल की मजबूती है उनका संघ परिवार से जुड़ाव और पार्टी मे प्रदेश मंत्री का दर्जा साथ ही 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर बागेश्वर जनपद का प्रभारी बनाये जाने से उनका एक ओर जहां कद बढ़ाया गया है वहीं दावेदारी भी मजबूत हुई है ।

बलवीर घुनियाल का संघ से जुड़ाव और संघ की पृष्ठभूमि भी उनकी दावेदारी को मजबूत करता है। वहीं 2017 और 2018 उपचुनाव में भी बलवीर घुनियाल बागी तेवर दिखा चुके हैं हालांकि पार्टी के शीर्षस्थ नेताओ के हस्तक्षेप और मनाने के बाद बलवीर घुनियाल मान भी गए थे।

इस फेहरिस्त में अगला नाम है भाजपा नेता भूपाल राम टम्टा का इनकी भी दावेदारी 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर मजबूत नजर आती है भूपाल राम टम्टा इससे पहले लंबे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं। 2006 में सरकारी सेवा से vrs लेने के बाद कांग्रेस से जुड़े  भूपाल राम टम्टा 2007 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और हरीश रावत के करीबी रहे हैं हालांकि तब उन्हें कांग्रेस के बागी डॉ जीतराम की बगावत के चलते बीजेपी प्रत्याशी गोविंद लाल शाह के सामने हार का सामना करना पड़ा था क्योंकि एनसीपी से लड़ते हुए डॉ जीतराम तकरीबन 7 हजार वोट ले गए थे जबकि भूपाल राम की हार का अंतर इन वोटों से कम ही था।

2012 में भी कांग्रेस आलाकमान के सम्मुख उन्होंने अपनी दावेदारी पेश की लेकिन काँग्रेस ने उन्हें टिकट न देते हुए जीतराम पर भरोसा जताया भूपाल राम टम्टा चुनाव में बगावत की बजाय पार्टी के साथ बने रहे।  फिर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद तक भी कांग्रेस में ही रहे और अचानक अपनी नाराजगी के चलते 2016 में कांग्रेस को छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। 2017 और 2018 में सब्र और धैर्य का इम्तिहान देने वाले   भूपाल राम टम्टा की दावेदारी भी 2022 के लिए मजबूत नजर आती है।

अब इस फेहरिस्त में अगला नाम है। भाजपा नेता नरेंद्र भारती का जो 2012 में बसपा से थराली सीट पर चुनाव लड़ चुके हैं हालांकि बसपा से मोहभंग होते ही नरेंद्र भारती ने भी 2012 में ही भाजपा का दामन थाम लिया वर्तमान में भाजपा नेता नरेंद्र भारती की धर्मपत्नी थराली नगर पंचायत में अध्यक्ष पद पर काबिज हैं।

भाजपा नेता नरेंद्र भारती की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक रूप से मजबूत है इनके पिता स्वर्गीय  प्रेमलाल भारती वर्ष 2002 में कांग्रेस के बैनर तले पंजे के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ चुके हैं और उत्तर प्रदेश की राजनीति के तबके एक बड़े चेहरे के रूप में विख्यात रहे हैं। 
ये तो थी दावेदारों की वो कतार जो मजबूती से अपनी दावेदारी पार्टी फोरम में रखने जा रही है अब इस लंबी फेहरिस्त से एक बात जो सामने निकल कर आती है वो ये है कि कांग्रेस के मुकाबले इस बार बीजेपी में टिकट के लिए दावेदारों की सूची लंबी है और परिसीमन की शर्तों के मुताबिक इस आरक्षित सीट पर 2022 का विधानसभा चुनाव आरक्षित कोटे का आखिरी चुनाव हो सकता है। ऐसे में बीजेपी से 5-5 दावेदारों की दावेदारी भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति भी पैदा कर सकती है ,टिकट किसी एक को ही मिलना है ऐसे में बगावत के सुर इस बार कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी में सुनाए जाने की सम्भावना भी बढ़ जाती है हालाँकि पूर्व के विश्लेषण की बात करें तो बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अब तक बगावती तेवर के नेताओ को मनाने में कामयाब ही नजर आया है।
थराली सीट पर बगावत का भी अपना इतिहास रहा है
थराली सीट पर पुराने चुनावो का विश्लेषण देखा जाए तो टिकट की मारामारी के बाद बगावत भी देखने को मिलती आई हैं सबसे पहले बात करते हैं कांग्रेस की जहां बगावत के बाद बागी हार का कारण बने। वर्ष 2002 में प्रेम लाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन अंदरूनी बगावत के चलते हार गए इस चुनाव में कांग्रेस से टिकट मांग रहे जसराम और शंकर लाल ने बगावत की थी और निर्दलीय पर्चा भरा था। 2002 के लिए  कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे महेश शंकर त्रिकोटी भी इस चुनाव में उम्मीदवार के रूप में लड़े थे।
वर्ष 2006 में वीआरएस लेने के तुरंत बाद 2007 में भूपाल राम टम्टा सबको चौंकाते हुए  कांग्रेस का  टिकट तो ले  आये लेकिन साथ ही बगावत कर  डॉ जीतराम एनसीपी से चुनाव लड़कर 7हजार से ऊपर वोट खींच लाये इस चुनाव में भी बगावत के बाद कांग्रेस और कांग्रेस प्रत्याशी भूपाल राम टम्टा को हार का सामना करना पड़ा इस बगावत के बाद डॉ जीतराम को 2012 में कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार बनाया।


वर्ष 2012 मे डॉ जीतराम पर जहां कांग्रेस ने भरोसा जताया वहीं कांग्रेस से अपनी दावेदारी ठोक रहे महेश शंकर त्रिकोटी ने निर्दलीय पर्चा भरा हालांकि इस बार बगावत के बाद भी डॉ जीतराम चुनाव जीतने में कामयाब रहे और उत्तराखंड बनने के बाद पहली बार थराली सीट पर कांग्रेस का परचम लहराया। इसके बाद 2017 विधानसभा चुनाव और 2018 उपचुनाव कांग्रेस ने डॉ जीतराम पर ही अपना भरोसा कायम रखा जिसे 2022 विधानसभा चुनाव में भी कायम रखे जाने की सम्भावना जताई जा रही है हालांकि सूत्र बताते हैं कि 2022 में टिकट न मिलने की स्थिति में फिर एक बार महेश शंकर त्रिकोटी बगावत की राह पकड़कर उनकी राह का रोड़ा बन सकते हैं।फिलहाल स्थिति wait & watch की बनी हुई है।
अब बात करते हैं बीजेपी में बागी तेवरों की 
वर्ष 2002 में पार्टी ने जनरल खंडूरी के चहेते मगन लाल शाह की बजाय गोविंद लाल शाह को टिकट दिया और वे जीत भी गए यहां मगन लाल शाह ने धैर्य रखते हुए 2007 का इंतजार किया लेकिन वर्ष 2007 में फिर एक बार पार्टी ने सिटिंग विधायक गोविंद लाल शाह पर भरोसा जताया तो बीजेपी नेता मगन लाल शाह ने पार्टी ही छोड़ दी और ukd से चुनाव लड़ लिया हालांकि बगावत के बावजूद गोविंद लाल शाह दोबारा विधायक बन गए।

वर्ष 2012 में सिटिंग विधायक गोविंद लाल शाह का टिकट कटा और गेंद मगन लाल शाह के पाले में आ गिरी अब सिटिंग विधायक गोविंद लाल शाह ने बगावती रुख अख्तियार कर लिया और निर्दलीय पर्चा भरकर चुनाव मैदान में जा कूदे नतीजा गोविंद लाल शाह तो 2027 वोट पर सिमट गए लेकिन बीजेपी उम्मीदवार मगन लाल शाह को भी 673 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।


इसी तरह 2017 में बीजेपी ने मगन लाल शाह पर दोबारा दांव खेला तो घाट से गुड्डू लाल और देवाल से बलवीर घुनियाल बगावत पर उतर आए हालांकि पार्टी ने बलवीर घुनियाल को तो मना लिया लेकिन घाट से गुड्डू लाल 7 हजार से ज्यादा वोट खींच गए तब भी मगन लाल शाह 4 हजार के आसपास के अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
वर्ष 2018 में मगन लाल शाह के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव में बीजेपी ने स्वर्गीय शाह की धर्मपत्नी मुन्नीदेवी को चुनावी मैदान में उतारा तो फिर एक बार गुड्डू लाल और बलवीर घुनियाल ने बगावती तेवर दिखाए हालांकि बाद में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के मनाने पर दोनों ही नेता मान गए और दोनों की घर वापसी कराने में प्रदेश नेतृत्व कामयाब रहा।
अब गुड्डू लाल आम आदमी पार्टी में हैं और थराली से आप के संभावित उम्मीदवार हैं इस बात को आप के मुख्यमंत्री चेहरा घोषित हो चुके कर्नल अजय कोठियाल भी मीडियाबाइट में कह चुके हैं लेकिन अभी तक पार्टी ने कोई घोषणा नहीं की है इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि शायद आप अब भी कांग्रेस और बीजेपी टिकट फाइनल होने का इंतजार कर रही हो और बगावत की सूरत में बागियों पर दांव आजमाने की कोशिश में हो क्योंकि थराली विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा थराली, देवाल और नारायणबगड़ विकासखण्ड का है और सबसे अधिक दावेदार भी इसी क्षेत्र से हैं।
बहरहाल फिर एक बार थराली का रण सज संवर रहा है देखते हैं जीत का सेहरा किसके सिर सजता है लेकिन बगावत फिर एक बार दोनों ही दलों की नींद हराम कर सकता है और टिकट की स्थिति को लेकर भाजपा इस बार पहले के मुकाबले ज्यादा असमंजस की स्थिति में जा सकती है।