चमोली आपदा: मां की एक फोन कॉल ने बचा दी 23 जिंदगियां

चमोली आपदा: मां की एक फोन कॉल ने बचा दी 23 जिंदगियां
चमोली आपदा: मां की एक फोन कॉल ने बचा दी 23 जिंदगियां

देहरादून: बीते रविवार को चमोली की ऋषिगंगा नदी में आए तबाही के सैलाब में अभी तक कुल 38 शव और 18 मानव अंग अलग-अलग स्थानों से बरामद किए गए हैं। अभी भी 34 लोग सुरंग में ही फंसे हैं। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं फंसे हुए लोगों की जिंदा रहने की उम्मीद भी धूमिल पड़ती जा रही है। लेकिन कई लोग इस हादसे में खुशकिस्मत भी रहे। ऐसा ही तपोवन निवासी विक्रम सिंह के साथ भी हुआ ष आपदा के दिन विक्रम सिंह अपने अपने 23 साथियों के साथ तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के बैराज में काम कर रहा था। सैलाब आने की आहट से बेखबर सभी मजदूर अपने काम में व्यस्त थे।  इसी बीच विक्रम का फोन बजा, फोन पर विक्रम की मां रोशनी देवी थीं, उन्होंने विक्रम को तुरंत सैलाब आने की सूचना दी और जल्द से जल्द उंचाई की ओर भागने को कहा। यह बात उसने अपने साथियों को भी बताई और वह सभी तत्काल ऊंचाई की तरफ भागे, उसी फोन की बदौलत न केवल विक्रम, बल्कि उसके 23 अन्य साथी भी सही-सलामत हैं। 
विक्रम ने उस दिन की आपबीती जागरण.कॉम को बताते हुए कहा कि रविवार के 'सुबह के साढ़े दस बजे थे। तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी। फोन के दूसरी ओर से मां चिल्लाते हुए ऊपर की तरफ भागने को कह रही थी। मैंने उनकी बात को मजाक समझ फोन काट दिया। इस पर मां ने फिर फोन किया और जोर-जोर से रोते हुए ऊपर की ओर भागने को कहा। बोली, पहाड़ी से सैलाब आ रहा है। विक्रम के मुताबिक पहाड़ी पर उसका घर इतनी ऊंचाई पर है कि वहां से धौली गंगा दूर तक साफ नजर आती है।' 
'मां की यह बात सुन मैं सतर्क हो गया और तेजी से डैम की सुरक्षा दीवार पर चढ़ गया। साथ ही चिल्लाते हुए अन्य 23 साथियों को भी बैराज की पहाड़ी पर चढ़ने को कहा। हालांकि, हमारे लिए बैराज की 70 मीटर ऊंची सुरक्षा दीवार पर चढ़ना आसान नहीं था। फिर भी दीवार पर लगे सरियों पकड़कर जैसे-तैसे सभी ऊपर चढ़ गए और सुरक्षित स्थान पर जा पहुंचे। जब मैं घर पहुंचा तो मां मुझे गले लगा फूट-फूटकर रोने लगीं। उनके लिए यह खुशी का सबसे बड़ा मौका था। उनकी फोन कॉल से ही मेरा और बैराज में काम कर रहे 23 अन्य साथियों का जीवन बचा हुआ है।'विक्रम बताता है कि उसने बैराज के नीचे काम कर रहे श्रमिकों को भी आवाज देकर और सीटी बजाकर चेताने का पूरा प्रयास किया। लेकिन कोई आवाज उन तक नहीं पहुंच पाई और देखते ही देखते 50 से अधिक श्रमिक सैलाब की भेंट चढ़ गए। यह खौफनाक दृश्य आपदा के छह दिन बाद भी उसकी आंखों में तैर रहा है। वह साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाया, इसका हमेशा उसे अफसोस रहेगा।