कैदी की समयपूर्व रिहाई में देरी के लिए हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार पर लगाया जुर्माना
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक कैदी की समयपूर्व रिहाई के मामले में पंजाब सरकार और उसके अधिकारियों की "लापरवाही, अक्षमता और अनिच्छा" पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने राज्य सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है और उसे दो सप्ताह के भीतर पंजाब राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति सुमित गोयल ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में सरकारी विभागों की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि राज्य के अधिकारियों की अक्षमता और उदासीनता संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
उच्च न्यायालय ने पंजाब के गृह सचिव को छह सप्ताह के भीतर अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है और चेतावनी दी है कि यदि वह ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो उनके और अन्य संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि जब राज्य के अधिकारी किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में निर्णय लेते हैं, तो उन्हें शीघ्रता और जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए। न्यायालय को यह कहते हुए खेद है कि अधिकारियों ने इस मामले में असाधारण ढिलाई बरती है। न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा 17 दिसंबर, 2024 को पारित आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इसे वाचनात्मक आदेश नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि ऐसा आदेश 'रहस्यमय स्फिंक्स के चेहरे' जैसा है, जिसका कोई कारण नहीं है, केवल एक आदेश है, जो जिम्मेदारी की भावना के विरुद्ध है।
यह मामला एक हत्या के दोषी से संबंधित है, जिसने 17 वर्ष, 7 महीने और 28 दिन की मूल सजा और 25 वर्ष, 7 महीने और 28 दिन की सजा पूरी कर ली थी। न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर इस पर एक नया तर्कपूर्ण और वाचनात्मक आदेश पारित करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि समयपूर्व रिहाई की नीतियाँ केवल औपचारिकताएँ नहीं हैं, ये अधीनस्थ कानून हैं और इनके तहत कैदियों को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। उन्होंने कहा कि राज्य के ढुलमुल रवैये और विभागों के बीच पत्राचार ने याचिकाकर्ता को न्याय से वंचित कर दिया है। अंत में, न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है। ऐसे मामलों में किसी भी रूप में लापरवाही या देरी स्वीकार्य नहीं होगी।